Monday, August 7, 2023

शिवाजी सावंत कृत "मृतुय्ञ्जय"

MrityunjayMrityunjay by Shivaji Sawant
My rating: 5 of 5 stars

वाह ! “मृतुय्ञ्जय” कितना भव्य महाकाव्य है - सूर्यपुत्र, कुन्तीपुत्र, महारथी, पराक्रमी, दानवीर कर्ण की अद्भुत कथा - स्वयं कर्ण, कुंती, वृषाली, शोण, दुर्योधन एवं श्री कृष्णा के दृष्टिकोण से यह रचित ७०० पृष्ठों का ग्रन्थ यद्यपि अत्यधिक विस्तृत है, फिर भी अत्यन्त रोचक है। भाषा की शुद्ध शैली अति मनमोहक है । कर्ण के दुर्भाग्यपूर्ण जीवन के बारे में रश्मिरथी (Hindi Poetic Novel): Rashmirathi में रामधारी सिंह 'दिनकर' ने लिखा है
हाय, कर्ण, तू क्यों जन्मा था?
जन्मा तो क्यों वीर हुआ?
कवच और कुण्डल-भूषित भी
तेरा अधम शरीर हुआ।
धँस जाये वह देश अतल में,
गुण की जहाँ नहीं पहचान,
जाती-गोत्र के बल से ही
आदर पाते हैं जहाँ सुजान।
समाज-की लज्जा से भयभीत अपनी माँ द्वारा जन्म लेते ही त्यागा; षड्यंत्रकारी द्रोणाचार्य (जो हमेशा कम प्रतिभाशाली अर्जुन के प्रति पक्षपाती थे) द्वारा अपमानित और तिरस्कृत; अर्जुन से प्रतिकूल तुलना, युद्ध-प्रारम्भ से पूर्व भीष्म द्वारा अपमानित और पदावनत; द्रौपदी द्वारा अपमानित; भीम द्वारा अपमानित, जातिवादी परशुराम द्वारा सघन परिश्रम व अडिग तप के पश्चात प्राप्त हुआ ब्रह्मास्त्र के उपयोग से वंचित रहना; महानतम अन्याय एक षड्यंत्र में छल से अपने पिता की दी गई दैवीय सुरक्षा - कवच और कुंडल का वरदान - कृष्ण-रुपी विष्णु एवं इंद्र द्वारा छीन लेना था । तथा अंत में रणभूमि में युद्ध के सत्रहवें दिन श्री कृष्ण की आज्ञा द्वारा ही अर्जुन द्वारा निहत्थे, रथ व अश्त्र शास्त्र रहित,असहाय इस महायोद्धा की निर्मम हत्या - पढ़कर ह्रदय दहल जाता है व अश्रु से नेत्र भर जाते हैं ।
इस कथानक को पढ़कर पांडवों के प्रति दृष्टिकोण परिवर्तित हो जायेगा, कर्ण व अश्वथामा से सहानुभूति उत्पन्न हो जाएगी, दुर्भाग्य वश उनकी यह स्थिति हुई। कर्ण का उपयोग दुर्योधन ने अपने स्वार्थ के लिए किया था। आरम्भ में दुर्योधन एक महान शक्तिशाली प्रतापी राजकुमार के रूप में सामने आता है, तदुपरांत, अपने चाचा शकुनि के दुष्प्रभाव से, एक षड्यंत्रकारी और असंतुलित शक्ति चाहने वाले व्यक्ति में परिवर्तित हो जाता है।

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