Saturday, January 14, 2023

कंकाल by जयशंकर प्रसाद

कंकाल Kankaalकंकाल Kankaal by जयशंकर प्रसाद
My rating: 4 of 5 stars

James Bond के रचनाकार Ian Flaming ने लिखा था
Once is happenstance. Twice is coincidence. Three times is enemy action
इस उपन्यास के संदर्भ में फ्लेमिंग के कथन में यह और जोड़ूंगा: Four times is divine intervention, and any more is a novelist bereft of ideas. यद्यपि कथा रोचक है और समाज की त्रुटियों व धार्मिक गुरुओं का पाखंड और आडंबर दर्शाती है, परन्तु इस जटिल व उलझा हुआ आख्यान में इतने अधिक संयोग होते हैं पात्रों के जीवन में, वह अस्वाभाविक लगता है।

लेखक के शुद्ध हिंदी का प्रयोग अति मनभावन है। कुछ उदाहरण
खरस्रोता जाह्नवी की शीतल धारा उस पावन प्रदेश को अपने कल-नाद से गुंजरित करती है।

... सुन्दर शिलाखंड, रमणीय लता-विदान, विशाल वृक्षों का मधुर छाया, अनेक प्रकार के पक्षियों का कोमल कलरव वहाँ एक अद्भुत शांति का सृजन करता है। आरण्यक-पाठ के उपयुक्त स्थान हैं।

रात बीत चली, उषा का आलोक प्राची में फैल रहा था। उसने खिड़की से झांक के देखा, तो उपवन में चहल-पहल थी। जूही की प्यालियों में मकरंद-मदिरा पीकर मधुपों की टोलियाँ लड़खड़ा रहीं थीं, और दक्षिण पवन मौलश्री के फूलों की कौड़ियां फ़ेंक रहा था। कमर से झुकी अलबेली बेलियाँ नाच रहीं थीं।

उसकी छाती में मधु-विहीन मधुचक्र-सा एक नीरस कलेजा था, जिसमे वेदना की ममाछियों की भन्नाहट थी।

मरकन्द से लदा हुआ मरुत चन्द्रिका-चूर्ण के साथ सौरभ-राशि बिखेर देता था।

वह यौवन, धीवर के लहरीले जाल में फंसे हुए स्निग्ध मत्स्य सा तड़फड़ाने वाला यौवन, आसान से दबा हुआ पंचवर्षीय चपल तुरंग के सामने पृथ्वी को कुरेदने वाला त्वरापूर्ण यौवन, अधिक न सम्हल सका.
सुन्दर भाषा के लिए ही यह पुस्तक अमूल्य है।

View all my reviews

No comments:

Post a Comment