Friday, May 5, 2023

शिवानी कृत रतिविलाप

रतिविलापरतिविलाप by Shivani
My rating: 5 of 5 stars

पितृसत्तात्मक समाज में अपने स्थान व अस्तित्व हेतु संघर्ष करने वाली दृढ़ स्त्रियों की उत्कृष्ट यथार्थवादी कहानियाँ। भाषा शुद्ध है और संवाद बिलकुल सजीव है, जिसमें कोई कलात्मकता नहीं है। कुछ कहानियाँ कुमाऊँनी लोकाचार को भी दर्शाती हैं, अधिकांश पितृसत्ता के खिलाफ महिला-केंद्रित हैं, कुछ व्यभिचारी कामुक पुरुषों की सनक पर कमजोर महिलाओं के प्रति उच्च जाति और कुमाऊँनी समाज के पाखंड को दर्शाती हैं। भाषा के कुछ उल्लेखनीय उदहारण
उन भीमोदर सेठानियों के बयालीस इंची कटियों में साड़ी लपेटती, तो यही लगता कि किसी मर्सिडीज ट्रक को साड़ी लपेट रही हूँ। …
आश्रम के महाकाल के त्रिनेत्र ने सचमुच ही उस सुदर्शन कंदर्प को भस्म कर दिया था। …
तूँणी के उस पुष्ट तने से अपनी नग्न कनक-निकष स्निग्धा पीठ को साढ़े वह अपनी दोनों पतली टाँगें फैलाकर बैठी और उसका चिथड़ा बन गया लहँगा जीर्ण-विवर्ण छतरी के से घेरे मैं फैल गया था। …
जिह्वाविहीन उसके मुँह के गह्वर में अधूरी जीभ का टुकड़ा, किसी यन्त्र-सा घूमता न जाने कौन-सा शिवस्त्रोत्र दोहराता था। मुझे मंदिर के उस तिमिराच्छन्न गूढ़ मंडप में उसकी उपस्थिति अमानवीय लगी थी। …
सांचे में ढली काली तन्वी देह को वही दैधर्य, होंठों पर वही स्निग्ध स्मित, काजल से चिरई आँखों में वही चुहल। …
आनंद केवल अपरिसीम आनंद का ही साम्राज्य, चिंता, विषाद, नैराश्य, किसी से भी अब तक हमारा मुंहफट यौवन नहीं टकराया था। …
ऐसा शांत सुन्दर सुमद्र-तट कभी नहीं देखा - दूर-दूर तक विराट दर्पण-से जलधिटत पर प्रितबिम्बित हो रहीं, पल-पल गिरगिट-सा रंग बदलता गुलाबी, ऊदा नीलाकाश, लंगर डाले खड़े जहाजों के हवा में लहरा रहे मस्तूल और रसभरी समुद्री बहार।
अंतिम कहानी की समाप्ति denouement के लिए उल्लेखनीय है।

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