Tuesday, December 26, 2023

फणीश्वरनाथ रेणु कृत कितने चौराहे

कितने चौराहेकितने चौराहे by फणीश्वर नाथ रेणु
My rating: 4 of 5 stars

Renu captures rural ethos, the small-town atmosphere and the dialect spoken so accurately. Here are some extracts:
मौसी ऐसी ही बोलती है। बोर्डिंग को बोटिन, विराटनगर को विलासनगर, रामनगर को लामनगर !

नया कोट-जूता पहनकर बाहर जरा निकलो -'जंटूलमन-इश्टूडन्ट' बनकर।

मोहरील मां के घर में मच्छरों और खटमलों के अलावा छछून्दरों और चमगादड़ों का भी बड़ा भारी अड्डा था। ... रात में रह-रहकर ट्रेजरी-कचहरी की ओर से एक खौफनाक आवाज आती। .. शहर के चौकीदारों की करकर्ष और डरावनी बोली, की छटपटाहट, की कचर-कचर और हजारों- हजार मच्छरों के सूइयां गड़ानेवाले गीत ! सामने वाले घर में बँधा हुआ बीमार घोड़ा नाक झाड़ता - फड़ररर !

कभी 'झोंक' में आकर तुम भी पड़ना-लिखना मत छोड़ बैठना। अभी सीधे बढ़े चलो। राह में छाँव में कहीं बैठना नहीं। कितने चौराहे आएँगे। न दाएँ मुड़ना, न बाएँ, सीधे चलते जाना।
The period described in the novella is before Independence and the patriotic fervour perfusing the youngsters of that time.

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