Sunday, March 10, 2024

श्रीलाल रचित राग दरबारी

 

राग दरबारीराग दरबारी by श्रीलाल शुक्ल
My rating: 5 of 5 stars

Easily one of the best books in Hindi, ever. A brilliant biting satire on the political landscape in India especially in the rural context – the village being a microcosm of India. The evocative description of the landscape, the day-to-day life of a village, the atmosphere is a delight to read; as are the vividly described eccentricities and foibles of the inhabitants. These are those memorable and entertaining characters
मंगल/सनीचर, लंगड़, रुप्पन, रंगनाथ, वैद्यजी, खन्ना, मोतीराम, मालवीय (kleptomaniac), the unnamed प्रिंसिपल व् क्लर्क, दरोगाजी, रामाधीन भीखमखेड़वी, स्व ठाकुर दुरबीन सिंह, रामस्वरूप चोर, काना पं. राधेलाल, बद्री पहलवान, छोटे पहलवान एंड बाप (cantankerous family), कालिका प्रसाद, बेला (एकमात्र महत्वपूर्ण महिला पात्र)
ये कथा है शिवपालगंज के बाशिंदों की जो अपने आप को गर्व से गँझहे कहते हुए आसपास के गांवों में दादागिरी करते हैं, परन्तु उनकी गतिविधियाँ देखकर उन्हें गँजेड़ी बुलाना अधिक उचित है। लेखक की लिखने की शैली अति हसीपद एवं रोचक है। प्रत्येक वाक्य हँसते हँसते लोट पॉट करा देता है, किन्तु शीघ्र ही कटु सत्य सामने आ जाता है और पाठक सोचने पर विवश हो जाता है अपने देश व समाज की दयनीय दशा पर।
Here is an evocative description of a roadside tea-stall
प्रायः सभी में जनता का एक मनपसंद पेय मिलता था जिसे वहाँ गार्ड, चीकट, चाय की कई बार इस्तेमाल की हुई पट्टी और खेलते पानी आदि के सहारे बनाया जाता था। उनमें मिठाइयां भी थीं जो दिन-रात आंधी-पानी और मक्खी-मच्छरों के हमलों का बहादुरी से मुकाबला करती थीं। वे हमारे देसी कारीगरों के हस्तकौशल और उनकी वैज्ञानिक दक्षता का सबूत देती थीं। वे बताती थीं कि हमें एक अच्छा रेजर-ब्लेड बनाने का नुस्खा भले ही न मालूम हो, पर कूड़े को स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ में बदल देने की तरकीब साड़ी दुनिया में अकेले हमीं को आती है।
A typical roadside scene as you approach any Indian village
थोड़ी देर में ही धुँधलके में सड़क की पटरी पर दोनों ओर कुछ गठरियाँ-सी रखी हुई नज़र आयीं। ये औरतें थीं, जो कतार बाँधकर बैठी हुई थीं। वे इत्मीनान से बातचीत करती हुई वायु-सेवन कर रही थीं और लगे-हाथ मल-मूत्र का विसर्जन भी। सड़क के नीच घूरे पटे पड़े थे और उनकी बदबू के बोझ से शाम की हवा किसी गर्भवती की तरह अलसायी हुई-सी चल रही थी। कुछ दूरी पर कुत्तों के भूँकने की आवाज़ें हुईं। आँखों के आगे धुएँ के जले उड़ते नज़र आये। इससे इंकार नहीं हो सकता था कि वे किसी गाँव के पास आ गए थे।
Here’s more dementia precox type of writing
तुमने मास्टर मोतीराम को देखा है कि नहीं। पुराने आदमी हैं। दरोगाजी उनकी बड़ी इज्जत करते हैं। वे दरोगा जी की इज्जत करते हैं। दोनों की इज्जत प्रिंसिपल साहब करते हैं। कोई साला काम तो करता नहीं है, सब एक दूसरे की इज्जत करते हैं।
Bureaucratic behaviour
एक पुराने श्लोक में भूगोल की एक बात समझाई गयी है कि सूर्या दिशा के आधीन होकर नहीं उगता। वह जिधर उदित होता है, वही पूर्व दिशा हो जाती है। उसी तरह उत्तम कोटि का सरकारी आदमी कार्य के आधीन दौरा नहीं करता, वह जिधर निकल जाता है, उधर ही दौरा हो जाता है। ... पिछले साल के व्याख्यान के कारण इस साल रबी की फसल अच्छी होने वाली है। काश्तकार उनके बताये तरीके से खेती कर रहे हैं। उन्हें यह मालूम हो गया कि खेत जोतना चाहिए। और उसमें खाद ही नहीं, बीज भी डालना चाहिए। वे सब बातें समझने-बूझने लगे हैं और नयी समझदारी के बारे में उनकी घबराहट छूट चुकी है।
An example of filth and our pullulating population
गांव के किए एक छोटा सा तालाब था। गन्दा कीचड़ से भरा-पूरा, बदबूदार। बहुत क्षुद्र घोड़े, गधे, कुत्ते, सूअर उसे देखकर आनंदित होते थे। कीड़े-मकोड़े और भुनगे, मक्खियाँ और मच्छर - परिवार-नियोजन के उलझनों से उन्मुख - वहां करोड़ों के संख्या में पनप रहे थे और हमें सबक दे रहे थे कि अगर हम उन्हीं के तरह रहना सीख लें तो देश की बढ़ती हुई आबादी हमरे लिए समस्या नहीं रह जाएगी।
गन्दगी की कमी पूरा करने के लिए दो दर्जन लड़के नियमित रूप से शाम-सवेरे और अनियमित रूप से दिन को किसी भी समय पेट के स्वेच्छाचार से पीड़ित होकर तालाब के किनारे आते थे और - ठोस, द्रव तथा गैस - तीनो प्रकार के पदार्थ उसे समर्पित करके, हलके होकर वापस लौट जाते थे।
अपने पिछड़ेपन के बावजूद किसी देश का जैसे-न-कोई आर्थिक और राजनितिक महत्व अवश्य होता है, वैसा ही इस तालाब का भी, गन्दगी के बावजूद, अपना महत्त्व था।
An acoustically accurate description of the noise pollution emanating from a blaring radios and other glimpses of rural India
तहसील के सामने तम्बोली की दुकान पर बैटरीवाला रेडियो अब भी बज रहा था और फ़िल्मी गानों के परनाले से 'अरमान, साजना, हसीन, जादूगर, मंजिल, तू कहाँ, सीना, गले लगा लो, गले लग जा, मचल-मचल कर, आंधियां, गम, तमन्ना, परदेशी, शराब, मुस्कान, आग, जिंदगी, मौत, बेरहम, तस्वीर, चांदनी, आसमाँ, सुहाना सपन, जोबन, मस्ती, उभर, इंतज़ार, बेजार, इसरार, इंकार, इकरार' ... जैसे शब्द लगातार गिर रहे थे जो भुखमरे देशों में नवजागरण का सन्देश देने के लिए सब प्रकार से उपयुक्त थे।

रुप्पन बाबू, जिनका जन्म 'अंग्रेज़ों, भारत छोड़ो' का नारा बुलंद हो जाने के बाद हुआ था, बड़े विश्वास से बोले "खुदा अपने गधों के जलेबियाँ खिला रहा है। हर शाख पै उल्लू बैठा है।"

उन्होंने सबसे पहले पान की दुकान खोजने का विचार किया। हिंदुस्तानी के लिए यह कोई कठिन बात नहीं है। रॉबिंसन क्रूसो के बजाय कोई हिंदुस्तानी किसी एकांत द्वीप पर अटक गया होता तो फ्राइडे की जगह वह किसी पान बनाने वाले को ही ढूँढ़ निकालता। वास्तव में सच्चे हिंदुस्तानी की यही परिभाषा है कि वह इंसान जो कहीं भी पान खाने का इंतज़ाम कर ले और कहीं भी पेशाब करने की जगह ढूँढ़ ले।
पीछे-पीछे मोटरें आती-जाती रहीं और लड़कियों की अंग्रेजी से सनी हुई आवाजें हवा में तड़प पैदा करती रहीं। खिलौनेवाले, किसी सिनेमा में किसी खिलौनेवाली ने जैसी ट्यून बजाई थी, उसी के नकल पर कर्णविस्फोटक संगीत के रचना करते रहे।
The imagery of a bucolic rural scene
थाने के बहार कान पर जनेऊ चढ़ाए हुए, बनियान और अंडरवियर पहन हुए तंदरुस्त सिपाही। पेड़ों के नीचे कुत्तों की तरह पड़े हुए चौकीदार। टूटे कुल्हड़ों, गंदे, भिनभिनाते हुए पत्तों और धुआँ निकलने वाली ढिबरियों से संपन्न मिठाई और चाय की दुकानें। चीकट लगी हुई तिपाइयाँ। सड़क पर घरघराते हुए नशेबाज़ ड्राइवरों के हाथों चलनेवाले हत्याभिलाषि ट्रकों के कारवां। साइकिल के कर्रिएर पर घास-जैसे कागज़ात लादे हुए वसूली के अमीन। तहसीलदार का बदकलाम अरदली। शराब पीकर नाइ की दुकान पर बिना मतलब झगड़नेवाले पं. रामधार का बेलगाम बेटा, जिसे सप्ताह में सात बार स्थानीय पोस्टमैन उससे भी ज्यादा शराब पीकर जूतों से पीटता है। कॉलेज की तरफ से आते हुए, एक-दूसरे की कमर में हाट डालकर चलते हुए, कोई कोरस-जैसा गाते विद्यार्थी।
A pithy rustic saying
शहर का आदमी है। सूअर का-सा लेंड़ - न लीपने के काम आये, न जलाने के।
A bonus is the garnishing before each chapter – a simple, yet cute graphic by Vikram Nayak.
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A book that deserves multiple re-readings! The translation by Gillian Wright (Raag Darbari), in contrast, is so nondescript and pedestrian.

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